एग्जिट पोल्स – वोटिंग का तुरंत फीडबैक
आपने शायद समाचार चैनल या सोशल मीडिया पर एग्जिट पोल्स के बारे में सुना होगा। ये वो सर्वे होते हैं जो लोग मतदान करने के बाद तुरंत पूछते हैं कि उन्होंने किसे वोट दिया। लेकिन सवाल है, क्या ये सच में चुनाव परिणामों को सही‑सही बताते हैं?
एग्जिट पोल कैसे काम करता है?
मुख्य रूप से दो तरीके होते हैं – फोन या मोबाइल ऐप पर सर्वे और स्टॉल पर सीधे पूछताछ। मतदान के बाद लोग थोड़ी देर में ही उत्तर देते हैं, इसलिए डेटा जल्दी मिल जाता है। फिर कंपनी इस जानकारी को सांख्यिकीय मॉडल से प्रोसेस करके एक अनुमानित प्रतिशत निकालती है।
यहाँ मुख्य बात यह है कि सैंपलिंग सही होनी चाहिए. अगर केवल शहर के कुछ इलाकों में ही सर्वे किया गया, तो परिणाम ग्रामीण क्षेत्रों का सही चित्र नहीं दे पाएंगे.
एग्जिट पोल की सीमाएँ
पहला कारण – लोग अक्सर अपना वोट बदलते हैं या झूठ बोलते हैं क्योंकि वे सार्वजनिक रूप से अपने चयन को उजागर नहीं करना चाहते। दूसरा, सर्वे में भाग लेने वाले आमतौर पर युवा और इंटरनेट‑सक्रिय होते हैं, जिससे उम्र के हिसाब से बायस बनता है. तीसरा, समय की सीमाएँ – अगर मतगणना देर तक चलती है तो शुरुआती एग्जिट पोल डेटा पुराना हो सकता है.
इन कारणों से विशेषज्ञ कहते हैं कि एग्जिट पोल को "रुचिकर संकेतक" माना जाए, लेकिन अंतिम परिणाम की गारंटी नहीं.
फिर भी कई बार एग्जिट पोल ने वास्तविक जीत-हार को सही पकड़ा है. 2024 के राष्ट्रीय चुनाव में कई चैनलों ने बताया कि पार्टी X का प्रतिशत लगभग 45% होगा, और बाद में वही आंकड़े दिखे। इसका मतलब यह नहीं कि हर बार यही सच रहेगा, लेकिन अगर सर्वे की डिजाइनिंग मजबूत हो तो भरोसेमंद संकेत मिलते हैं.
आपको क्या करना चाहिए? जब एग्जिट पोल देख रहे हों, तो दो चीज़ें याद रखें: पहला – डेटा का स्रोत देखें (कौन सी एजेंसी कर रही है?) और दूसरा – विभिन्न सर्वे के परिणामों को एक साथ तुलना करें। अगर सभी में समान रुझान दिख रहा हो, तो संभावना अधिक है कि वह रुझान सही होगा.
अंत में, एग्जिट पोल से हमें यह समझ मिलती है कि जनता का मूड क्या है. लेकिन वोट डालते समय अपने विचारों को ही प्राथमिकता देनी चाहिए, न कि सर्वे के आंकड़ों को.
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