अंपायरिंग विवाद: क्यों होते हैं और कैसे रोकें?
क्रिकेट या फुटबॉल में अंपायर का फैसला अक्सर खेल के रुख को बदल देता है। कभी‑कभी वही फैसला दर्शकों, खिलाड़ियों या मीडिया तक पहुंचते ही बहस की राह बन जाता है। तो आखिर ये विवाद क्यों पैदा होते हैं? सबसे पहले समझें कि अंपायर भी इंसान होते हैं, उनकी नजर में कई बार चीज़ें धुंधली दिखती हैं और टेक्नोलॉजी से बच नहीं पाते।
मुख्य कारण जो बनाते हैं अंपायरिंग विवाद
1. दृष्टि की कमी – तेज़ी से चल रहे बॉल या गेंद को सही समय पर देखना मुश्किल हो सकता है, खासकर धूप में या रात के मैचों में।
2. नियमों की जटिलता – अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नियम अक्सर बदलते रहते हैं, जिससे अंपायर कभी‑कभी पुराने प्रोटोकॉल का इस्तेमाल कर बैठते हैं।
3. तकनीकी समस्याएं – डीआरएस या एचडीसीसी जैसे सहायक उपकरणों में गड़बड़ी होने से निर्णय उलझन पैदा करता है।
4. दबाव और भावनाएँ – बड़े मैचों में भीड़, टीम का दबाव या व्यक्तिगत तनाव अंपायर के फैसले को प्रभावित कर सकता है.
खिलाड़ियों और दर्शकों पर प्रभाव
जब विवाद उत्पन्न होता है तो पहले खिलाड़ी असंतोष जताते हैं, अक्सर शब्दों से नहीं बल्कि बॉडी लैंग्वेज से दिखाते हैं – जाँच‑पड़ताल या गुस्सा। यह टीम की मनोवैज्ञानिक स्थिति को गिरा सकता है और जीत के मौके कम कर देता है. दर्शकों में निराशा बढ़ती है, सोशल मीडिया पर नकारात्मक टिप्पणियों का धागा बनता है, जिससे खेल का माहौल बिगड़ जाता है.
ऐसे समय में टीम मैनेजर या कोच की भूमिका अहम हो जाती है। उन्हें शांत रहकर अंपायर से बात करनी चाहिए और खिलाड़ियों को भी समान स्तर पर लाना चाहिए. अगर विवाद बड़े पैमाने पर फैला, तो लीग अथवा बोर्ड तुरंत तकनीकी समीक्षा कर सकता है – जैसे कि डीआरएस के वीडियो फ़ुटेज दिखाकर सही निर्णय निकालना.
आपका क्या करना चाहिए? सबसे पहले, मैच देख रहे हों तो हर फैसला को व्यक्तिगत रूप से न लें. अगर आप खिलाड़ी हैं तो अपने कॅप्टन या कोच से सीधे बात करके समाधान खोजें. दर्शक होने पर भी, सोशल मीडिया पर तर्कसंगत टिप्पणी करें, ग़लतियों की ओर इशारा करें लेकिन अपमानजनक भाषा नहीं.
अंत में एक छोटा टिप: अधिकांश अंतरराष्ट्रीय बोर्ड अब ‘टिकटॉक रेफ़्री’ यानी दो अंपायरों के साथ वीडियो समीक्षा को लागू कर रहे हैं. इससे विवाद कम होते हैं और खेल का न्याय अधिक स्पष्ट रहता है. इसलिए, अगली बार जब आप कोई विवाद देखें, तो याद रखें कि तकनीक भी इंसान की मदद करती है – बस हमें सही ढंग से इस्तेमाल करना चाहिए.
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