दोहा: भारतीय साहित्य का अमर गीत और जीवन के सबक
दोहा एक ऐसा साहित्यिक रूप है जो सिर्फ़ कविता नहीं, बल्कि जीवन का सीधा सबक है। दोहा, दो पंक्तियों में लिखा गया एक संस्कृत और प्राकृत शैली का शास्त्रीय छंद, जो साधारण भाषा में गहरा ज्ञान समेटता है। ये दो पंक्तियाँ इतनी सरल होती हैं कि गाँव की बूढ़ी दादी भी उन्हें याद कर लेती है, और इतनी गहरी कि शिक्षाविद उन पर पीएचडी कर लें। दोहा कोई आधुनिक ट्वीट नहीं, बल्कि एक ऐसा ज्ञान-संग्रह है जो हज़ारों साल पुराना है और आज भी बरकरार है।
इसके पीछे खड़े हैं कबीर दास, 15वीं शताब्दी के संत कवि जिन्होंने दोहों में धर्म, अहंकार और सच्चाई का विरोध किया और तुलसीदास, रामभक्ति के प्रवर्तक जिन्होंने रामचरितमानस के साथ दोहों में नैतिकता का निर्माण किया। ये दोनों ने दोहा को एक ऐसा उपकरण बना दिया जिससे आम इंसान भी आध्यात्मिक ज्ञान तक पहुँच सके। कोई ब्राह्मण नहीं, कोई पंडित नहीं, बस एक दोहा — जैसे "कबीरा बाँधे बाँध न आए, जो बाँधे सो बाँध न आए" — ये सिर्फ़ शब्द नहीं, जीवन का नियम है। ये दोहे अक्सर राजनीति, धर्म और सामाजिक अन्याय के खिलाफ़ भी लिखे गए, जैसे आज के सोशल मीडिया पोस्ट, लेकिन इतने गहरे कि उन्हें सदियों तक याद रखा जाए।
आज भी दोहा की ताकत बरकरार है। जब आप किसी को सलाह देते हैं, तो बोलते हैं — "जो चाहे वह करे, जो चाहे वह भोगे"। ये कबीर का दोहा है। जब आप अपने बच्चे को समझाते हैं कि लालच बुरा है, तो बोलते हैं — "मन बिना तन के नहीं चले, तन बिना मन के नहीं चले"। ये तुलसीदास का दोहा है। इस तरह दोहा आपके घर में, आपकी बातचीत में, आपके अपने दिमाग में बस गया है। ये कोई पुरानी किताब नहीं, बल्कि एक जीवित आदत है।
इस पेज पर आपको ऐसे ही दोहों से जुड़े लेख मिलेंगे — जिनमें आध्यात्मिक सबक, दैनिक जीवन के संकट, और भारतीय संस्कृति के गहरे सिद्धांत छिपे हैं। चाहे वो तुलसी विवाह के दिन का दोहा हो, या फिर एक साइक्लोन के समय लोगों के बीच फैला एक पुराना दोहा — यहाँ हर लेख एक नया सबक लेकर आता है। ये दोहे आज भी बोले जा रहे हैं, और ये लेख आपको बताएंगे कि कैसे।
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21 नवंबर 2025 को दोहा में एशिया कप राइजिंग स्टार्स 2025 के सेमीफाइनल में बांग्लादेश ए ने भारत ए को सुपर ओवर में बिना किसी रन के हराकर फाइनल में प्रवेश कर लिया।