श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनावों में अनुरा कुमारा डिसानायके की जीत ने देश की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। यह जीत माक्र्सवादी नेता के लिए एक आदर्श मानी जा रही है, जिन्होंने पारंपरिक दलों की धारा के खिलाफ जाकर चुनाव लड़ा था। चुनाव आयोग के अनुसार, डिसानायके ने कुल 5,740,179 वोट हासिल करके बड़ी जीत दर्ज की, जबकि उनके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी सजित प्रेमदासा को 4,530,902 वोट मिले। डिसानायके की जीत से यह जाहिर होता है कि श्रीलंका के लोग पारंपरिक राजनीतिक व्यवस्था से निराश होकर नए नेतृत्व की तलाश में हैं।
डिसानायके ने अपनी प्रो-लेबर और एंटी-एलीट प्लेटफार्म पर मजबूती के साथ चुनाव लड़ा। विशेष रूप से युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है। उनका यह संदेश कि आम लोगों की आवाज़ सुनी जाएगी और उनकी समस्याओं का समाधान किया जाएगा, ने उन्हें जनता के करीब ला दिया। जहां एक ओर पारंपरिक दलों ने जनता की उम्मीदों को हाशिये पर रखा, वहीं दूसरी ओर डिसानायके ने लोगों की परेशानियों को महसूस कर उन्हें अपना समर्थन दिया।
इस चुनाव का महत्व इस कारण भी था कि यह श्रीलंका के इतिहास के सबसे गंभीर आर्थिक संकट के दौरान हुआ। देश आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा था और इस चुनाव ने जनमत को जाहिर करने का एक मंच प्रदान किया। अनुरा कुमारा डिसानायके ने इस विकट स्थिति को समझकर ही अपने चुनावी अभियानों का संचालन किया और जनता की सुनवाई की। वर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, जिन्होंने पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे के बाद पद संभाला था, उनके सुधारात्मक नीतियों के खिलाफ यह चुनाव एक प्रकार का जनमत संग्रह माना जा रहा है।
डिसानायके ने IMF के साथ वर्तमान सरकार के समझौते का पुनर्गठन करने का इरादा जाहिर किया है, ताकि कुछ कठोर कदमों को नरम किया जा सके। वहीं, विक्रमसिंघे ने चेतावनी दी है कि किसी भी तरह के बदलाव देनदारियों के पुनर्नियोजन को कठिन बना सकते हैं और इससे आर्थिक स्थिरता पर असर पड़ सकता है। इस चुनावी प्रक्रिया ने पारंपरिक राजनीतिक तंत्र के खिलाफ जनता की नाराजगी को रेखांकित किया है।
डिसानायके की यह जीत युवाओं के जोरदार समर्थन के बिना मुमकिन नहीं थी। उनकी नीतियों ने युवाओं के दिलों को छू लिया और उन्हें एक नई दिशा दी। जहां पारंपरिक दल असमर्थ रहे, वहां अनुरा कुमारा ने युवाओं को एक नया मार्ग दिखाया।
श्रीलंका में अभी भी कई सारी आर्थिक समस्याएं विद्यमान हैं। अत्यधिक ऋण, उच्च कर दरें, और महंगाई ने जनता की जीवनशैली को प्रभावित किया है। इससे निपटने के लिए डिसानायके को कई कठोर कदम उठाने होंगे। उन्होंने यह कहा है कि आर्थिक संकट के समाधान के लिए वह जनता के साथ मिलकर काम करेंगे और उनकी जरूरतों को प्राथमिकता देंगे।
आने वाले समय में, अनुरा कुमारा डिसानायके को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। उन्हें न केवल IMF के साथ समझौते का पुनर्गठन करना होगा, बल्कि देश की आर्थिक विकास को भी सुनिश्चित करना होगा। इस पर विश्व की भी नज़र होगी कि कैसे यह माक्र्सवादी नेता आर्थिक स्थिरता और विकास की नई परिभाषाएँ गढ़ता है।
इस चुनावी नतीजे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि श्रीलंका की जनता अब पुराने राजनीतिक दलों की बजाय नए नेतृत्व में विश्वास जता रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अनुरा कुमारा डिसानायके कैसे इन उम्मीदों को पूरा करते हैं और देश को एक नई दिशा में ले जाते हैं।