रोश्शन एंड्र्यूज द्वारा निर्देशित नई फिल्म 'देवा' में शाहिद कपूर मुख्य भूमिका में हैं। उनके साथ पूजा हेगड़े, पवैल गुलाटी और कुव्रेत सैत भी महत्वपूर्ण किरदारों में नजर आते हैं। यह कहानी देव अम्ब्रे नामक एक पुलिस इंस्पेक्टर की है, जिसका जीवन अपने सबसे अच्छे दोस्त और साथी एसीपी रोहन डी'सिल्वा की दुखद मौत के बाद उल्टा हो जाता है। यह फ़िल्म देव के व्यक्तिगत जीवन और प्रोफेशनल जिम्मेदारियों के टकराव को दर्शाती है। फिल्म का सबसे बड़ा तत्व इसके नैतिक प्रश्न और व्यक्ति के दृष्टिकोण को लेकर हैं।
फिल्म की शुरुआत एक फ्लैशबैक से होती है, जहाँ देव एक बड़ा केस सुलझाते हैं, लेकिन एक दुर्घटना के कारण उनकी याददाश्त खो जाती है। देव के डॉक्टर और उनके वरिष्ठ अधिकारी फरहान को इस बात की जानकारी होती है। दुर्घटना से पहले देव ने फरहान को बताया था कि उन्होंने केस का समाधान कर लिया है। देव अपने निडर और क्रूर कानून-प्रवर्तन के लिए जाने जाते हैं, जो अक्सर प्रश्न उठाता है कि वे पुलिस अधिकारी हैं या माफिया।
मुख्य कहानी देव की उस जांच पर आधारित है जिसमें वे मुंबई के एक गैंगस्टर को पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं। पुलिस विभाग को शक है कि कोई अंदरूनी व्यक्ति अपराधियों की मदद कर रहा है। इसी दौरान देव के दोस्त रोहन की हत्या हो जाती है, जिससे देव अलावा तक पीछा नहीं छोड़ पाते। परन्तु जल्द ही वे दुर्घटना का सामना करते हैं, और अपनी याददाश्त खो बैठते हैं।
याददाश्त खोने के बाद देव को रोहन के हत्या के केस को फिर से सौंपा जाता है। जैसे-जैसे वे गहराई में जाते हैं, वे सबूतों को खोजने लगते हैं और आखिरकार अपराधी की पहचान कर लेते हैं, जो न केवल उन्हें बल्कि दर्शकों को भी चौंकाता है।
शाहिद कपूर के द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रदर्शन बेशक फिल्म का प्रमुख आकर्षण है। उनका अभिनय न केवल जलवाब देता है, बल्कि दर्शकों को बांधे रखने में सक्षम है। उनके किरदार की साहसी शैली और कानून के प्रति अदम्य दृष्टिकोण दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देता है। हालांकि, हम यह भी देख सकते हैं कि कहानी कुछ पूर्वानुमानित स्थितियों में पड़ जाती है, जो दर्शकों के इंट्रेस्ट को थोड़ा कम कर सकती है।
फिल्म में पूजा हेगड़े और कुव्रेत सैत जैसे सहायक कलाकार भी हैं, जिनकी भूमिका का भरपूर उपयोग नहीं हो पाया है। ऐसा लगता है कि लेखक ने इन्हें बरतने में थोड़ी कमी बरती है। यद्यपि इनकी अदाकारी ठीक-ठाक देखने को मिलती है, लेकिन उनके पात्रों में गहराई और विकास की कमी स्पष्ट नजर आती है। दर्शकों का ध्यान खींचने के लिए यह एक महत्वपूर्ण मामला है जो फिल्म निर्माताओं को देखना चाहिए था।
फिल्म की दृश्यपृष्ठभूमि के रूप में मुंबई के शहरी दृश्य महत्वपूर्ण हैं। शहर के सौंदर्य को इसके प्रसिद्ध स्थलों से अलग रख कर दिखाया गया है, जो कहानी में वास्तविकता और स्थानीय तत्व जोड़ता है। यहां तक कि बिना बड़े-बड़े स्मारकों के बिना भी, इसने मुंबई के जीवन और हलचल को प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया है।
हालांकि, फिल्म आलोचकों द्वारा उसकी जटिलताओं के लिए कुछ आलोचना सहन करती है, विशेष रूप से इसके दूसरे भाग में। यहां कहानी कुछ अनुचित मोड़ों और स्थानांतरणों के साथ थोड़ी उलझन में पड़ जाती है। साथ ही, महिला पात्रों की गहराई की कमी भी देखी गई है जो फिल्म की दूसरी बडी कमी मानी जाती है।
'देवा' पर प्रतिक्रिया मिश्रित रही है। जहां एक ओर शाहिद कपूर के अभिनय की प्रशंसा की गई है, वहीं कहानी की स्पष्टता और मूलता की कमी के कारण इसे आलोचना का सामना करना पड़ा है। फिल्म के एक्शन दृश्य भले ही विशिष्ट और मनोरंजक बने हों, लेकिन कहानी की कमी और मोड़ों की पूर्वानुमानितता के कारण यह कुछ दर्शकों के लिए निराशाजनक रही है।
फिल्म की आलोचना जाहिर तौर पर हमें एक संदेश देता है कि स्क्रिप्ट का महत्त्व हमेशा से साथ में रहता है। इसलिए, परिणीत दर्शकों को एक मौलिक और संरचित कहानी की उम्मीद होती है, जो उन्हें अद्वितीय अनुभव दे सके।