शरद पूर्णिमा: आध्यात्मिक चमक और सांस्कृतिक रंग
जब हम शरद पूर्णिमा, हिन्दू पंचांग की शरद ऋतु में आने वाली सबसे बड़ी पूर्णिमा तिथि है, जो सूर्यकोश का अंत और शरद संक्रांति के बाद आती है. Also known as शरद का पावन दिन, it सांस्कृतिक और धार्मिक दोनों पहलुओं से बहुत महत्त्व रखती है। यह हिन्दू त्यौहार, जिनमें सामुदायिक पूजा, दीपावली‑जैसे एल्गो और खास व्यंजन शामिल होते हैं का प्रमुख हिस्सा है। इस दिन चंद्र कैलेंडर, जो चंद्रमा की क्षुर्दिंग को मापता है और महीने के दिन तय करता है को ध्यान में रखकर कई अनुष्ठान किए जाते हैं। साथ‑ही‑साथ कृषि, जो शरद ऋतु में फसल की कटाई और बीज बुआई के चक्र को नियंत्रित करता है को भी यह पावन दिन प्रभावित करता है। इस प्रकार शरद पूर्णिमा आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनों स्तरों पर जीवन को जोड़ती है।
शरद पूर्णिमा के प्रमुख अनुष्ठान और रिवाज़
शरद पूर्णिमा पर कई घरों में अर्घ्य जल तैयार किया जाता है, जिसमें शुद्ध पानी, शहद और चंदन के टुकड़े डालकर सूर्य एवं चंद्र दोनों को अर्पित किए जाते हैं। महिलाएँ विशेष रूप से इस दिन ‘पूरणिमा पूजा’ करती हैं, जिसमें माँ लक्ष्मी, सरस्वती और काली का समेती पूजन किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में लोग ‘कुँड़ेला’ निकाली गई तिल के तेल से दीपक जलाते हैं, क्योंकि माना जाता है कि यह रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है। ग्रामीण इलाकों में शरद ऋतु की फसल कटाई के बाद अक्सर भैंस या गाय के ‘दूध‑संकलन’ का विशेष रूप से उत्सव मनाया जाता है, क्योंकि इस महीने में दूध की मात्रा अधिक होती है और इसे ऊर्जा के रूप में माना जाता है। इस प्रकार धार्मिक अनुष्ठान और कृषि गतिविधियों की आपसी जुड़ाव शरद पूर्णिमा को सामाजिक रूप से भी महत्त्वपूर्ण बनाता है।
आजकल शरद पूर्णिमा को सिर्फ़ धार्मिक समारोह तक सीमित नहीं रखा जाता; शहरी लोग इसे फ़ोटोग्राफी, पिकनिक और पारिवारिक मिलन का अवसर मानते हैं। आप एक छोटा सा ‘सूर्य‑चंद्र समन्वय’ सत्र भी रख सकते हैं, जिसमें सभी सदस्य एक साथ सूर्यास्त के समय बाहर बैठकर चंद्रमा के उगने की प्रतीक्षा करते हैं। इस समय ध्यान, योग या हल्की साँस‑व्यायाम के द्वारा मन को शांत किया जाता है, जो तनाव‑मुक्त जीवनशैली को बढ़ावा देता है। इस प्रकार शरद पूर्णिमा के आध्यात्मिक पहलू को आधुनिक स्वास्थ्य‑प्रथाओं से जोड़ना संभव है।
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