संन्यास: आध्यात्मिक राह का सरल परिचय
आप कभी सोचे हैं कि रोज़मर्रा की भाग‑दौड़ में शांति कहाँ मिलती है? कई लोग मानते हैं कि संन्यासन सिर्फ पुजारी या संतों के लिये है, पर असल में यह एक ऐसी विधि है जो हर किसी को अपने भीतर की आवाज़ सुनने में मदद कर सकती है।
संन्यास का मूल अर्थ और इतिहास
हिंदी शब्द ‘संन्यास’ का मतलब होता है ‘वस्तुओं से हटना’। प्राचीन काल में यह वैदिक ग्रंथों में उल्लेखित है, जहाँ ऋषि‑मुनियों ने सांसारिक संपत्ति छोड़ कर तपस्या की राह चुनी। उनका लक्ष्य था आत्मा को शुद्ध करना और मोक्ष पाना।
समय बदलता गया, लेकिन संन्यासन का सिद्धांत वही रहा – अपने मन को साफ़ रखना, ज़रूरी चीजें चुनना और बेमतलब के झंझट से दूर रहना। आजकल भी कई लोग इस विचार को अपनाते हैं, चाहे वह आध्यात्मिक गुरु बनना हो या सिर्फ रोज़ 10 मिनट ध्यान लगाना।
आधुनिक जीवन में संन्यास कैसे अपनाएँ?
पहला कदम है ‘सादगी’ – अपने घर से अनावश्यक चीजें निकाल दें, चाहे वो कपड़े हों या पुराने कागज़ के नोट्स। दूसरा, रोज़ सुबह 5‑10 मिनट खाली समय रखें और बस अपनी सांस पर ध्यान दें। यह छोटा अभ्यास आपके मन को शांत करता है और दिन भर की तनावभरी स्थिति को संभालना आसान बनाता है।
तीसरा, डिजिटल डिटॉक्स अपनाएँ। हर रोज़ सोशल मीडिया में 1‑2 घंटे कट कर पढ़ने या प्रकृति में चलने का समय निकालें। यह आपको अपने वास्तविक विचारों से जोड़ता है और असली लक्ष्य पर केंद्रित रखता है।
अंत में, खुद को सच्ची सेवा के लिये तैयार करें – चाहे वह पड़ोसी की मदद हो या स्थानीय संगठनों में स्वेच्छा कार्य। इस तरह का कर्म आपके अंदर की शांति को बढ़ाता है और संन्यासन के मूल सिद्धांतों को जीवित रखता है।
संक्षेप में, संन्यास केवल तीर्थ यात्रा नहीं, बल्कि एक दैनिक अभ्यास है जो सरल कदमों से शुरू हो सकता है। अगर आप रोज़ थोड़ा‑थोड़ा बदलाव लाएँ, तो जीवन में बड़ी शांति महसूस करेंगे और खुद को अधिक पूर्ण पाएँगे।
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