लिंग समानता – क्या है और हम इसे कैसे बना सकते हैं?
हर दिन हम सुनते हैं ‘लिंग समानता’ का जिक्र, लेकिन असली मतलब समझ पाते हैं? आसान शब्दों में, लिंग समानता का मतलब है कि लड़के‑छोड़े, महिलाओं‑पुरुषों को बराबर अधिकार और अवसर मिलें। यह सिर्फ नीति की बात नहीं, बल्कि हमारे रोज़मर्रा के फैसलों में भी झलकना चाहिए – जैसे घर में काम बाँटना या नौकरी में प्रमोशन देना।
लिंग समानता क्यों जरूरी है?
जब दोनों लिंग को बराबर मौका मिलता है, तो समाज तेज़ी से आगे बढ़ता है। उदाहरण के तौर पर, जब महिला शिक्षित होती हैं तो बच्चे बेहतर पढ़ते‑लिखते हैं और परिवार की आय में भी इज़ाफा होता है। कंपनियों ने देखा है कि जेंडर‑डायवर्स टीमें अधिक रचनात्मक होती हैं और प्रॉफिट बढ़ाती हैं। इसलिए लिंग समानता सिर्फ सामाजिक न्याय नहीं, बल्कि आर्थिक विकास का भी हिस्सा है।
घर में आसान कदम
1. काम बाँटें: घर के काम को बराबर बाँटे – खाना बनाना, कपड़े धोना या बच्चों की पढ़ाई देखना। छोटा बदलाव बड़े असर देता है।
2. बच्चों में समानता सिखाएँ: खेल‑कूद और पढ़ाई में लड़के‑लड़की को बराबर प्रोत्साहित करें, ‘छोड़ा’ या ‘छोटी’ जैसे लिंग‑आधारित लेबल से बचें।
3. भुगतान में समानता: यदि आप घर के बाहर काम कर रहे हैं तो अपनी सैलरी का रिव्यू लें और देखें कि क्या वही काम के लिए पुरुषों की तुलना में कम भुगतान हो रहा है।
इन छोटे‑छोटे कदमों से लिंग समानता की नींव बनती है। अगर आप कंपनी या स्कूल में हैं, तो जेंडर इक्वालिटी पॉलिसी को लागू करने के लिए HR या प्रिंसिपल से बात कर सकते हैं – जैसे महिलाओं के लिए लीडरशिप ट्रेनिंग या पेड मैटरनिटी सपोर्ट।
याद रखें, परिवर्तन एक दिन में नहीं आता। हर बार जब आप किसी निर्णय में ‘पुरुष‑महिला’ के बजाए ‘व्यक्ति‑विचार’ को प्राथमिकता देते हैं, तो समाज की दिशा बदलती है। लिंग समानता का सफर शुरू करने के लिए अभी कुछ छोटा कदम उठाएँ – चाहे वह घर में काम बाँटना हो या अपने नेटवर्क में महिलाओं को प्रोफ़ाइल बढ़ाने के अवसर देना।
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मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में सुधार के लिए हेमा समिति की रिपोर्ट जारी: यौन उत्पीड़न और लिंग समानता पर जोर
हेमा समिति की रिपोर्ट मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में सुधार लाने के उद्देश्य से जारी की गई है। रिपोर्ट यौन उत्पीड़न, शोषण और लिंग असमानता की लंबे समय से चली आ रही समस्याओं के समाधान के लिए कई सिफारिशें प्रस्तुत करती है। इसमें आंतरिक शिकायत समिति और ग्रेवांस रेड्रेसल सेल की स्थापना पर जोर दिया गया है। केरला हाई कोर्ट ने इन सिफारिशों का समर्थन किया है।