राहुल गांधी ने भारतीय व्यवसायों की नीतिगत चुनौतियों के बीच 'प्ले-फेयर' कंपनियों की प्रशंसा की

राहुल गांधी ने भारतीय व्यवसायों की नीतिगत चुनौतियों के बीच 'प्ले-फेयर' कंपनियों की प्रशंसा की
के द्वारा प्रकाशित किया गया Manish Patel 6 नवंबर 2024 15 टिप्पणि

भारतीय व्यवसायों के समक्ष चुनौतियाँ

राहुल गांधी ने हाल ही में भारतीय कॉरपोरेट विश्व में उभरते एकाधिकारवादी रुझानों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने इस स्थिति की तुलना ऐतिहासिक ईस्ट इंडिया कंपनी से की जो भारतीय संसाधनों के दोहन के लिए प्रसिद्ध थी। उनके अनुसार, ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय व्यापार को अपने तरीके से नियंत्रित करने की कोशिश की थी, जबकि वह ब्रिटेन में एक आदर्श कंपनी के रूप में अपनी छवि प्रस्तुत करती थी। अभिनेता अब भी देश में कुछ प्रमुख कंपनियाँ इस प्रकार के व्यवसायिक मोड़ ले रही हैं।

गांधी ने अपनी आलोचना में यह भी कहा कि आजकल कई भारतीय व्यवसायी अपने विचार खुलकर व्यक्त करने से डरते हैं। इसका कारण यह है कि उन्हें सरकार की एजेंसियों द्वारा जाँच का सामना करना पड़ सकता है, जो उनकी संपत्ति और व्यापार को प्रभावित कर सकता है। इसमें इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, सीबीआई और ईडी जैसी संस्थाएँ शामिल हैं। इस संदर्भ में गांधी ने इस स्थिति की चिंता व्यक्त की कि यह स्थिति ना केवल विचारों की स्वतंत्रता पर प्रभाव डाल रही है बल्कि नवाचारों को भी बाधित कर रही है। इस भय के बावजूद भी कई 'प्ले-फेयर' कंपनियाँ इस प्रणालियों से गुजरकर सफल हो रही हैं।

'प्ले-फेयर' कंपनियाँ जो प्रेरणा के स्रोत

राहुल गांधी ने कई भारतीय कंपनियों को 'प्ले-फेयर' कहकर उनके योगदान की प्रशंसा की। उनके अनुसार ये कंपनियाँ सही मायनों में भारतीय व्यवसाय जगत की रीढ़ हैं। उन्होंने जैसे कि लेंसकार्ट के पियूष बंसल, टायनोर के संस्थापकों और इनमोबी, मन्यवर, जोमैटो आदि कंपनियों का उदाहरण दिया। ये कंपनियाँ अपने नवाचारी व्यापारिक तरीकों और जनोपयोगी उत्पादों के माध्यम से एक स्वतंत्र वातावरण में प्रतिस्पर्धा कर रही हैं।

उभरती भारतीय कंपनियों का योगदान

गांधी ने इस बात का उल्लेख किया कि वैश्विक बाज़ार में सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए घरेलू स्तर पर सशक्त कंपनियों की आवश्यकता है। उन्होंने उदाहरण के लिए, अजीम प्रेमजी के वप्रो जैसी कंपनियों का जिक्र किया जो अपने नैतिक समर्पण और व्यापारिक दक्षता के लिए जानी जाती हैं। इन कंपनियों ने अपनी नवीनता और राष्ट्रीय गौरव के माध्यम से स्वयं को सिद्ध किया है।

राहुल गांधी का यह विचारशील दृष्टिकोण देश के व्यवसायी त्रासदी को समझने और उसमें सकारात्मक बदलाव लाने के लिए यह प्रेरणा बना सकता है। उन्होंने अंत में यह भी संकेत दिया कि भाषा और संस्कृति के मूल्यांकन से परे, हमारे देश में मौलिक व्यापारिक चेतना का विकास होना आवश्यक है। आज बिजनेस का क्षेत्र सिर्फ मुनाफे के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक प्रभाव और वैश्विक पहचान के लिए भी चलता है। एकाधिकारवाद से निजात पाकर ही सच में कारोबारों की स्वतंत्रता और सृजनात्मकता फूल-फल सकती है।

15 टिप्पणि

  • Image placeholder

    Ashwini Belliganoor

    नवंबर 6, 2024 AT 13:31

    राहुल गांधी की बात में कुछ सत्य जरूर है।

  • Image placeholder

    Hari Kiran

    नवंबर 18, 2024 AT 11:38

    सही कहा आपने, मगर हमें यह देखना चाहिए कि ऐसी प्रशंसा व्यावसायिक स्वतंत्रता को कितना सच में बढ़ावा देती है।
    बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के लिए नीतियों में स्पष्टता आवश्यक है।
    नवोन्मेष को दबाने वाले तंत्रों को हटाने की जरूरत है।

  • Image placeholder

    Hemant R. Joshi

    नवंबर 30, 2024 AT 09:44

    व्यवसायिक वातावरण का विश्लेषण करने से पहले हमें ऐतिहासिक तुलना को उचित रूप से समझना चाहिए।
    ईस्ट इंडिया कंपनी ने केवल आर्थिक लाभ नहीं, बल्कि सामाजिक संरचनाओं को भी आकार दिया।
    आज के भारतीय उद्यमियों को वही शक्ति नहीं मिलती, परंतु नियामक दबाव बढ़ रहा है।
    विचारों की स्वतंत्रता और नवाचार का प्रतिच्छेदन बिंदु ही व्यावसायिक प्रगति का मूल है।
    यदि सरकार एजेंसियों की जांच को डरावना बना देती है तो उद्यमी जोखिम उठाने से पीछे हटेंगे।
    नवाचार की धुरी में जोखिम लेना ही आवश्यक है, इसलिए अनावश्यक जाँच को सीमित करना चाहिए।
    प्ले-फेयर कंपनियों का उदय इस बात का प्रमाण है कि स्वतंत्र बाजार तंत्र में प्रतिस्पर्धा और नवाचार फलते-फूलते हैं।
    इन कंपनियों ने तकनीकी उन्नति और ग्राहक-केंद्रित मॉडल अपनाकर बाजार को बदल दिया है।
    उदाहरण के तौर पर जोमैटो ने खाद्य वितरण को डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म में परिवर्तित किया।
    इनमोबी ने रियल एस्टेट को डेटा‑ड्रिवेन बनाकर पारदर्शिता लाई।
    टायनोर जैसे फिनटेक स्टार्टअप ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया।
    ऐसे मॉडल दिखाते हैं कि नीतियों में लचीलापन और समर्थन से किन परिणामों की उम्मीद की जा सकती है।
    यदि नियामक ढांचा अत्यधिक कठोर रहेगा तो ये सफलताएँ अस्थायी रहेंगी।
    साथ ही, बड़े समृद्ध व्यवसायी अपनी आवाज़ को दबाने के लिए विभिन्न माध्यमों से दबाव डाल सकते हैं।
    इसलिए, स्वतंत्रता, नवाचार और प्रतिस्पर्धा के बीच संतुलन बनाना अनिवार्य है।
    संक्षेप में, हमें एक ऐसा माहौल तैयार करना चाहिए जहाँ उद्यमी बिना डर के प्रयोग कर सकें और सामाजिक मूल्य सृजन में योगदान दे सकें।

  • Image placeholder

    guneet kaur

    दिसंबर 12, 2024 AT 07:51

    उन्हें इस तरह की सराहना से दूर रहना चाहिए।

  • Image placeholder

    PRITAM DEB

    दिसंबर 24, 2024 AT 05:58

    हमारा देश सांस्कृतिक विविधता में भी आर्थिक शक्ति पा सकता है।
    ऐसी कंपनियाँ सामाजिक प्रभाव के साथ साथ आर्थिक विकास भी लाती हैं।

  • Image placeholder

    Saurabh Sharma

    जनवरी 5, 2025 AT 04:04

    सही कहा, लेकिन यहाँ कुछ टर्मिनोलॉजी स्पष्ट नहीं है – जैसे ‘शेयरहोल्डर एंगेजमेंट’ और ‘कंप्लायंस फ्रेमवर्क’।
    इनकी समझ के बिना संवाद अधूरा रहेगा।

  • Image placeholder

    Suresh Dahal

    जनवरी 17, 2025 AT 02:11

    व्यापारिक स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिये संवैधानिक प्रावधानों की पुनः समीक्षा आवश्यक है।

  • Image placeholder

    Krina Jain

    जनवरी 29, 2025 AT 00:18

    ये बात तो सच्ची ही हे,पर कभी कभी पॉलिसी इम्प्लीमेंटेशन में भी ध्यन देना पडता हे।

  • Image placeholder

    Raj Kumar

    फ़रवरी 9, 2025 AT 22:24

    ओह, यह तो इतना सरल नहीं है! हर बार एक ही बात दोहराते देख दिल थक जाता है।
    जैसे कि हम सब को बस एक ही दिशा से देखना चाहिए।

  • Image placeholder

    venugopal panicker

    फ़रवरी 21, 2025 AT 20:31

    एक ओर जहाँ आप कॉरपोरेट प्रभुत्व की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर यह देखते हुए कि छोटे‑छोटे स्टार्ट‑अप्स भी लहरें बना रहे हैं, हमें एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
    मात्रात्मक आंकड़े और गुणात्मक विश्लेषण दोनों को साथ लाकर ही हम असली तस्वीर समझ पाएँगे।

  • Image placeholder

    Vakil Taufique Qureshi

    मार्च 5, 2025 AT 18:38

    सिर्फ बहुत घनी बात नहीं, स्पष्ट बिंदु चाहिए।

  • Image placeholder

    Jaykumar Prajapati

    मार्च 17, 2025 AT 16:44

    कभी‑कभी सरकार के एजेंसियों के पास इतनी शक्ति होती है कि वे निजी उद्यमों को सापेक्षिक रूप से नयी चुनौतियों का सामना करवाते हैं।
    यह ठीक नहीं है।

  • Image placeholder

    PANKAJ KUMAR

    मार्च 29, 2025 AT 14:51

    बहुत अच्छा बिंदु उठाया गया है, हमें मिलकर इस दिशा में संवाद जारी रखना चाहिए।
    एकता में ही शक्ति है।

  • Image placeholder

    Anshul Jha

    अप्रैल 10, 2025 AT 12:58

    देशभक्तों को ये दिखाना चाहिए कि विदेशी हस्तियों की प्रशंसा में हमें अपने राष्ट्रीय हितों को भूलना नहीं चाहिए।

  • Image placeholder

    Anurag Sadhya

    अप्रैल 22, 2025 AT 11:04

    बहुत ही दिलचस्प चर्चा रही, धन्यवाद सभी को! 🌟😊

एक टिप्पणी लिखें