राहुल गांधी ने भारतीय व्यवसायों की नीतिगत चुनौतियों के बीच 'प्ले-फेयर' कंपनियों की प्रशंसा की

राहुल गांधी ने भारतीय व्यवसायों की नीतिगत चुनौतियों के बीच 'प्ले-फेयर' कंपनियों की प्रशंसा की

भारतीय व्यवसायों के समक्ष चुनौतियाँ

राहुल गांधी ने हाल ही में भारतीय कॉरपोरेट विश्व में उभरते एकाधिकारवादी रुझानों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने इस स्थिति की तुलना ऐतिहासिक ईस्ट इंडिया कंपनी से की जो भारतीय संसाधनों के दोहन के लिए प्रसिद्ध थी। उनके अनुसार, ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय व्यापार को अपने तरीके से नियंत्रित करने की कोशिश की थी, जबकि वह ब्रिटेन में एक आदर्श कंपनी के रूप में अपनी छवि प्रस्तुत करती थी। अभिनेता अब भी देश में कुछ प्रमुख कंपनियाँ इस प्रकार के व्यवसायिक मोड़ ले रही हैं।

गांधी ने अपनी आलोचना में यह भी कहा कि आजकल कई भारतीय व्यवसायी अपने विचार खुलकर व्यक्त करने से डरते हैं। इसका कारण यह है कि उन्हें सरकार की एजेंसियों द्वारा जाँच का सामना करना पड़ सकता है, जो उनकी संपत्ति और व्यापार को प्रभावित कर सकता है। इसमें इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, सीबीआई और ईडी जैसी संस्थाएँ शामिल हैं। इस संदर्भ में गांधी ने इस स्थिति की चिंता व्यक्त की कि यह स्थिति ना केवल विचारों की स्वतंत्रता पर प्रभाव डाल रही है बल्कि नवाचारों को भी बाधित कर रही है। इस भय के बावजूद भी कई 'प्ले-फेयर' कंपनियाँ इस प्रणालियों से गुजरकर सफल हो रही हैं।

'प्ले-फेयर' कंपनियाँ जो प्रेरणा के स्रोत

राहुल गांधी ने कई भारतीय कंपनियों को 'प्ले-फेयर' कहकर उनके योगदान की प्रशंसा की। उनके अनुसार ये कंपनियाँ सही मायनों में भारतीय व्यवसाय जगत की रीढ़ हैं। उन्होंने जैसे कि लेंसकार्ट के पियूष बंसल, टायनोर के संस्थापकों और इनमोबी, मन्यवर, जोमैटो आदि कंपनियों का उदाहरण दिया। ये कंपनियाँ अपने नवाचारी व्यापारिक तरीकों और जनोपयोगी उत्पादों के माध्यम से एक स्वतंत्र वातावरण में प्रतिस्पर्धा कर रही हैं।

उभरती भारतीय कंपनियों का योगदान

गांधी ने इस बात का उल्लेख किया कि वैश्विक बाज़ार में सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए घरेलू स्तर पर सशक्त कंपनियों की आवश्यकता है। उन्होंने उदाहरण के लिए, अजीम प्रेमजी के वप्रो जैसी कंपनियों का जिक्र किया जो अपने नैतिक समर्पण और व्यापारिक दक्षता के लिए जानी जाती हैं। इन कंपनियों ने अपनी नवीनता और राष्ट्रीय गौरव के माध्यम से स्वयं को सिद्ध किया है।

राहुल गांधी का यह विचारशील दृष्टिकोण देश के व्यवसायी त्रासदी को समझने और उसमें सकारात्मक बदलाव लाने के लिए यह प्रेरणा बना सकता है। उन्होंने अंत में यह भी संकेत दिया कि भाषा और संस्कृति के मूल्यांकन से परे, हमारे देश में मौलिक व्यापारिक चेतना का विकास होना आवश्यक है। आज बिजनेस का क्षेत्र सिर्फ मुनाफे के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक प्रभाव और वैश्विक पहचान के लिए भी चलता है। एकाधिकारवाद से निजात पाकर ही सच में कारोबारों की स्वतंत्रता और सृजनात्मकता फूल-फल सकती है।