फेज 2 क्लिनिकल ट्रायल में क्या हुआ?
Sun Pharma Advanced Research Company Ltd, जिसे आमतौर पर SPARC कहा जाता है, ने 4 जून को बताया कि उनका प्रमुख इम्यूनोलॉजी प्रोजेक्ट – SCD-044 (विबोज़िलिमोड) – दो मध्यम‑स्तर के परीक्षणों में लक्ष्य नहीं मिला। SOLARES PsO (सोरियासिस) और SOLARES AD (एटोपिक डर्मेटाइटिस) दोनों ट्रायल में लक्ष्य रहे PASI और EASI स्कोर में 75% सुधार, लेकिन उपचार ने इन मानकों को नहीं छुआ।
सोरियासिस ट्रायल में 263 मरीजों को तीन डोज़ और एक प्लेसबो समूह में बाँटा गया, जबकि एटोपिक डर्मेटाइटिस में 250 रोगियों को वही योजना अपनाई गई। दोनों अध्ययन रैंडमाइज़्ड, डबल‑ब्लाइंड, प्लेसबो‑कंट्रोल्ड थे, पर अंत में डेटा ने दिखाया कि दवा ने अपेक्षित क्लिनिकल सुधार नहीं दिखाया।
- सोरियासिस समूह में 75% सुधार की आशा थी, लेकिन वास्तव में औसत सुधार 40‑45% रहा।
- एटोपिक डर्मेटाइटिस में भी EASI स्कोर में सुधार 42% तक सीमित रहा, जहाँ लक्ष्य 75% था।
- दोनों ट्रायल में कोई गंभीर सुरक्षा समस्या नहीं मिली, लेकिन प्रभावशीलता में कमी ने कंपनी को आगे की दिशा तय करने पर मजबूर किया।
इन परिणामों के बाद, Sun Pharma ने एटोपिक डर्मेटाइटिस के लिए SCD-044 के विकास को रोक दिया और सम्पूर्ण दवा पर अगले कदमों की समीक्षा शुरू की।
बाजार पर असर और कंपनी की वर्तमान स्थिति
निवेशकों ने इस खबर पर तुरंत प्रतिक्रिया दी। NSE पर SPARC के शेयर 185 रुपये से ओपन होकर 156.14 रुपये के नीचले स्तर तक गिरे, अर्थात् लगभग 20% की गिरावट। दोपहर तक शेयर 159.55 रुपये पर ट्रेड हो रहे थे, जो पिछले क्लोज़ 195.18 रुपये से 18% नीचे थे। पैरेंट कंपनी Sun Pharma के शेयर भी 2% तक गिरे, न्यूनतम 1,649 रुपये पर पहुँचे।
यह नुकसान सिर्फ एक दिन का नहीं, बल्कि कंपनी के दो साल के निराशाजनक ट्रायल रिकॉर्ड का हिस्सा है। 2024 के अप्रैल में SPARC ने अपने पार्किंसन ड्रग Vodobatinib को भी रोक दिया था, क्योंकि 442‑मरीज़ पर हुए इंटर्मिडिएट विश्लेषण में कोई लाभ नहीं दिखा। अब SCD-044 के साथ दो बड़ी विफलताएँ कंपनी की इम्यूनोलॉजी रणनीति को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही हैं।
वित्तीय तौर पर SPARC ने हालिया तिमाही में राजस्व में 64% की बढ़त दिखा कर ₹27.19 करोड़ तक पहुँचाया, पर सालाना राजस्व में 5% गिरावट के साथ कुल ₹71.77 करोड़ रहा। शुद्ध नुकसान FY 2024‑25 में ₹342.51 करोड़ रहा, जो पिछले वर्ष के ₹387.21 करोड़ की तुलना में सुधार दिखाता है, फिर भी बड़े नुकसान की स्थिति बनी हुई है।
इन परिणामों के बीच कंपनी ने लागत‑संकुचन पर ध्यान दिया है। 2023‑24 में अमेरिका में क्लिनिकल स्टाफ सहित 20% से अधिक कर्मचारियों को निकाल दिया गया, और R&D को अधिक फोकस्ड एवं लीन मॉडल में बदला गया। यह कदम शेयरधारकों को दिखाने के लिए है कि कंपनी द्वितीयक खर्चों को कम करके मुख्य शोध कार्य पर ध्यान देगी।
भविष्य में SPARC को दो प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। पहला, SCD-044 के लिए वैकल्पिक सुझाव या फॉर्मुलेशन विकसित करना, ताकि इम्यूनोलॉजी पोर्टफोलियो में अंतर न आए। दूसरा, निवेशकों का भरोसा पुनः जीतना, जो लगातार दो बड़े क्लिनिकल झटकों से डगमगा रहे हैं।
जब तक कंपनी नई रणनीति नहीं पेश करती, बाजार में अस्थिरता जारी रहने की संभावना है। लेकिन अगर नियामक अनुमति और नई क्लिनिकल डेटा सकारात्मक निकलते हैं, तो SPARC के शेयरों को पुनः उठाने की राह खुल सकती है। इस समय, SPARC शब्द निवेशकों के लिए हर खबर में नज़र में रहेगा, चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक।
Akshay Vats
सितंबर 26, 2025 AT 23:12फार्मा कंपनियों को अपने रोगियों के भरोसे को हल्के में नहीं लेना चाहिए। उन्होंने दो बड़े क्लिनिकल ट्रायल में लक्ष्य नहीं पाया, जिससे निवेशकों को भारी नुकसान हुआ। नतीजों में पारदर्शिता की कमी भी दिखती है और इसको ठीक करना आवश्यक है।
ऐसे मामलों में नैतिक जवाबदेही अनिवार्य है।
Anusree Nair
अक्तूबर 9, 2025 AT 17:52सभी को इस तथ्य को समझना चाहिए कि क्लिनिकल ट्रायल में विफलता भी एक सीख देती है। कंपनी ने लागत‑संकुचन के कदम उठाए हैं, जिससे आगे की दिशा स्पष्ट हो सकती है। आशा है कि भविष्य में बेहतर परिणाम आएँगे।
Bhavna Joshi
अक्तूबर 22, 2025 AT 12:32फेज‑2 क्लिनिकल ट्रायल के परिणाम न केवल आर्थिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण संकेत देते हैं। पहली बात, PASI और EASI स्कोर में अपेक्षित 75% सुधार न मिलना इस बात का संकेत है कि मॉलेक्यूलर मेकैनिज़्म अपेक्षित पाथवे को प्रभावी रूप से मॉड्यूलेट नहीं कर पा रहा है। दूसरा, दोनो इंडिकेशन में समान डोज़ स्कीम अपनाने से यह प्रश्न उठता है कि डोज़ चयन और बायोएवैलिएबिलिटी पर पुनः विचार आवश्यक है। तीसरा, डबल‑ब्लाइंड डिज़ाइन के बावजूद संभावित बायस या एन्डपॉइंट चयन में त्रुटि हो सकती है, जिसे स्टैटिस्टिक वैलिडेशन द्वारा पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए। चौथा, यह स्पष्ट है कि सुरक्षा प्रोफ़ाइल तो ठीक रहा, लेकिन इफ़ेक्टिवनेस की कमी क्लिनिकल वैल्यू को गिरा देती है। पाँचवाँ, कंपनी को अब एडेवलपमेंट पाइपलाइन में वैकल्पिक इम्म्यूनोमॉड्यूलेटरी एजेंट्स की ओर मुड़ना होगा, जिससे रिस्क डाइवर्सिफाइ हो सके। छठा, वित्तीय नुकसान को देखते हुए, शेयरहोल्डर्स को पर्याप्त रिस्क मैनेजमेंट रणनीति की आवश्यकता है। सातवाँ, भविष्य की ट्रायल डिज़ाइन में एन्डपॉइंट को रीयल‑वर्ल्ड क्लिनिकल बेंचमार्क के साथ एलाइन करना चाहिए। आठवाँ, इस विफलता को ठीक से डॉक्यूमेंट करके, नियामक एजेंसियों के साथ पारदर्शी संवाद स्थापित करना अनिवार्य होगा। नौवाँ, कंपनी की R&D खर्च को लीन मॉडल में बदलते समय, महत्वपूर्ण बायोमार्कर अनुसंधान को संरक्षित रखना चाहिए। दसवाँ, सॉरियासिस और एटोपिक डर्मेटाइटिस दोनों रोगी जनसंख्या में विभिन्न जीनोटाइपिक प्रोफ़ाइल हो सकती है, जिन पर सिबि‑ऑमिक्स विश्लेषण लाभकारी सिद्ध हो सकता है। ग्यारहवां, क्लिनिकल साइट चयन में भी विविधता लाकर डेटा की जनरलाइज़ेबिलिटी बढ़ायी जा सकती है। बारहवां, पिछली विफलताओं जैसे वोडोबेटिनिब के साथ की गई सीख को इस प्रोजेक्ट में इंटीग्रेट करना चाहिए। तेरहवां, निवेशकों को इस बात का भरोसा दिलाने के लिए, फेज‑3 में एंट्री बिंदु को पुनः परिभाषित किया जा सकता है। चौदहवां, पैटर्न रेगुलेशन की दृष्टि से, इस परिणाम को FDA या CDSCO के साथ साझा करके, भविष्य में स्वीकृति प्रक्रिया को तेज़ किया जा सकता है। पंद्रहवां, अंततः, यह घटना एक नई रणनीतिक पुनरावलोकन का संकेत देती है, जहाँ इन्फ्लेमेटरी पाथवे को टारगेट करने वाले मल्टी‑टार्गेट एजेंट्स को प्राथमिकता देना चाहिए। सत्रहवां, अगर उपरोक्त सभी पहलुओं को समग्र रूप से देखा जाए, तो SPARC के लिए यह मोड़ चुनौतियों के साथ नई संभावनाओं का द्वार खोल सकता है।
Ashwini Belliganoor
नवंबर 4, 2025 AT 06:12वित्तीय आंकड़े बहुत चिंताजनक हैं।
Hari Kiran
नवंबर 17, 2025 AT 00:52सही कहा आपने, इस विफलता को सिर्फ नुकसान नहीं बल्कि सीख के रूप में देखना चाहिए। यदि कंपनी डेटा‑ड्रिवन इंटरेक्टिव निर्णय लेती है, तो भविष्य में पुनर्प्राप्ति संभव है। साथ ही, स्टॉक की अस्थिरता को कम करने के लिए पारदर्शी कम्युनिकेशन आवश्यक है।
Hemant R. Joshi
नवंबर 29, 2025 AT 19:32SPARC की हालिया रिपोर्ट दर्शाती है कि क्लिनिकल ट्रायल में लक्षित एंटी‑इंफ्लेमेटरी एजेंट की प्रभावशीलता को सत्यापित करना कितना जटिल कार्य है। पहला पहलू यह है कि रोगी चयन मानदंड स्पष्ट नहीं था, जिससे एन्डपॉइंट वैरिएबिलिटी बढ़ी। दूसरा, डोज़ रेंज को इंट्रोस्पेक्टिव रूप से स्केलेबल नहीं रखा गया, इसलिए फार्माकोकाइनेटिक प्रोफ़ाइल का अनुमान लगाना कठिन हो गया। तीसरा, प्लेसबो समूह की प्रतिक्रिया भी अपेक्षित स्तर पर थी, जिससे एक्टिव ट्रीटमेंट के लाभ की तुलनात्मकता धुंधली हो गई। चौथा, डेटा एनालिसिस में प्रयुक्त सांख्यिकीय मॉडल ने संभावित उपसमूह प्रभाव को अनदेखा किया, जो परिणाम को प्रभावित कर सकता था। पाँचवाँ, कॉम्प्लायंस रेट को मॉनिटर करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस एडेप्शन नहीं किया गया, जिससे डोज़ एडेहेरेंस में अनिश्चितता बनी। छठा, यह स्पष्ट है कि भविष्य की ट्रायल डिज़ाइन में एन्डपॉइंट हायरार्की को पुनः परिभाषित करना चाहिए, ताकि क्लिनिकल अर्थव्यवस्था को बेहतर ढंग से मापा जा सके। सातवाँ, लागत‑संकुचन की रणनीति को लागू करते हुए, कुछ महत्वपूर्ण बायोमार्कर रिसर्च को कट नहीं करना चाहिए, क्योंकि यही वैलिडेशन की रीढ़ है। अंत में, अगर कंपनी इन पहलुओं को समुचित रूप से सुधार लेती है, तो अगली बार के टर्नअराउंड टाइम को कम किया जा सकता है और निवेशकों का विश्वास भी पुनः स्थापित होगा।
guneet kaur
दिसंबर 12, 2025 AT 14:12ऐसी बेमानी रिपोर्ट से शेयरधारक बाहर निकलेंगे।
PRITAM DEB
दिसंबर 25, 2025 AT 08:52भविष्य में सुधार की आशा है।