भारत और चीन के बीच सीमा विवाद एक दीर्घकालिक मुद्दा है जो दशकों से चल रहा है। इन दोनों पड़ोसी देशों के बीच सीमा विवाद की जड़ें 1962 के युद्ध तक जाती हैं। विवाद के मुख्य बिंदु अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख क्षेत्र में स्थित हैं। इन क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच सीमा की कोई स्पष्ट वर्गीकरण नहीं है, जिससे विवाद की स्थिति उत्पन्न होती रहती है। पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में, विशेष रूप से, वर्ष 2020 में एक भीषण संघर्ष हुआ, जिसमें कई सैनिकों की जान चली गई।
2020 की गलवान घाटी संघर्ष ने दो देशों के बीच के तनाव को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया। यह संघर्ष विशेष रूप से उस इलाके में स्थित था जिसे 'फिंगर एरिया' कहा जाता है। जब दोनों सेनाओं के बीच यह हिंसक टकराव हुआ, तो दोनों देशों के सैनिकों की बड़ी संख्या का जमाव देखा गया। इस घटना के बाद, बातचीत और बातचीत के कई दौर शुरू हुए जिससे तनाव को कम करने की कोशिश की गई। भारतीय सेना ने यहां पर अपनी आकस्मिक शक्तियों को मजबूत किया और आपातकालीन मदद के रूप में अतिरिक्त सैन्य संसाधनों को तैनात किया गया। इसी बीच दोनों देशों ने निरंतर बातचीत के माध्यम से समाधान खोजने की कोशिश जारी रखी।
एक लंबे समय के वार्ता के बाद, चीन और भारत ने हाल ही में एक समझौते पर सहमति व्यक्त की है जिससे पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध समाप्त किया जा सकेगा। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने इस समझौते की पुष्टि की। जियान ने कहा कि दोनों देश राजनयिक और सैन्य माध्यमों से निरंतर संवाद कर रहे थे और अंततः उन्हें सफलता मिली। यह समझौता उन मुद्दों का समाधान करेगा जो 2020 के गालवान संघर्ष के बाद उठे थे। उन्होंने कहा कि चीन और भारत इस समझौते की कार्यान्विति के लिए मिलकर काम करेंगे। हालांकि, उन्होंने विस्तृत जानकारी देने से इनकार कर दिया।
इस समझौते को हासिल करने में दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका रही। हाल ही में, रूस के कज़ान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के आसपास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच उच्चस्तरीय बातचीत हुई। इस बैठक ने दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास को बढ़ाने का महत्वपूर्ण काम किया। इन वार्ताओं ने दोनों नेताओं के सुविधा प्राप्त करने वाली स्थितियों को उजागर किया जहां पर दोनों देशों के साथ चल रहे विवाद को खत्म करने वाले मंथन का आयोजन किया गया था। इस पैमाने पर हुई बातचीत ने समझौते को असहमति के नीचे लाने में बड़ी भूमिका निभाई।
यह समझौता, जो चार वर्षों के लंबे समयगतिरोध को समाप्त करता है, दोनों देशों की द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक नई राह खोल सकता है। अब जबकि समझौते ने एक नई उम्मीद जगी है, दोनों देश अपनी सीमाओं को सुधारने, शांति बनाए रखने और स्थिरता को प्रोत्साहित करने की दिशा में तत्परता दिखा रहे हैं। यह उम्मीद की जा रही है कि यह समझौता अन्य विवादास्पद चिंताओं पर और अधिक सुलहपूर्ण दृष्टिकोण को जन्म देगा। यह समय बताएगा कि इस समझौते की कार्यान्विति सफल होगी या नहीं, लेकिन फिलहाल यह दोनों देशों के बीच पूर्ण स्थिरता और शांति के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।