मनोहर कुमार के निधन से रोहन कपूर स्तब्ध: 'दूसरे पिता' और देशभक्ति के प्रतीक को खोने का शोक

मनोहर कुमार के निधन से रोहन कपूर स्तब्ध: 'दूसरे पिता' और देशभक्ति के प्रतीक को खोने का शोक
के द्वारा प्रकाशित किया गया Manish Patel 5 अप्रैल 2025 10 टिप्पणि

मनोहर कुमार के साथ बिताया समय

अभिनेता रोहन कपूर ने अपने प्रिय अभिनय गुरु और 'दूसरे पिता' मनोज कुमार के निधन पर बहुत ही गहरा शोक प्रकट किया है। उनके अनुसार, मनोज कुमार के निधन के साथ भारतीय सिनेमा ने एक युग को विदाई दे दी है। रोहन कपूर ने व्यक्तिगत स्तर पर मनोज कुमार के साथ संबंधों को याद किया जब वे 1981 की फिल्म *क्रांति* में सहायक निर्देशक के रूप में उनके साथ जुड़े थे।

'आज मेरे दूसरे पिता ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है,' उन्होंने कहा। उनकी इस भावना को सही ठहराते हुए, उन्होंने मनोज कुमार के जीवन के अभूतपूर्व योगदान और उनके द्वारा फिल्मी दुनिया में की गई लाजवाब देशभक्तिपूर्ण फिल्मों की चर्चा की। *उपकार* और *पूरब और पश्चिम* जैसी फिल्मों के माध्यम से उन्होंने भारतीय दर्शकों के दिलों में देशप्रेम की भावना जागरूक की।

भारतीय सिनेमा में मनोज कुमार का योगदान

मनोहर कुमार का फिल्मी करियर छह दशकों से अधिक लंबा था। उनके निधन के बाद, रोहन कपूर ने याद किया कि कैसे उनके द्वारा बनी फिल्में राष्ट्रीय गर्व का स्रोत बनीं। उन्होंने कहा कि भारत ने केवल एक अभिनेता नहीं, बल्कि देशभक्ति का एक प्रतीक खो दिया है। मनोज कुमार को 'भारत कुमार' के नाम से भी जाना जाता था, जो उनकी फिल्मों के देशभक्ति विषयों के कारण उन्हें मिला।

उन्होंने बॉलीवुड में अपनी अनोखी पहचान बनाई और नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहे। रोहन कपूर का इमोशनल ट्रिब्यूट इस बात का प्रतीक है कि मनोज कुमार की विदाई से फिल्म इंडस्ट्री में कितना बड़ा खालीपन आ गया है। 87 वर्ष की आयु में, 4 अप्रैल, 2025 को उम्र संबंधी बीमारियों के कारण उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी यादें और उनका काम सदैव जीवित रहेगा।

10 टिप्पणि

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    venugopal panicker

    अप्रैल 5, 2025 AT 18:50

    मनोज कुमार जी का निधन सच्ची कल्पना के साथ एक खालीपन छोड़ गया है। उनके द्वारा निर्मित देशभक्ति की झलक अभी भी दिलों में जिंदा है, और हम सभी को उनका योगदान याद रहेगा। आशा है कि उनकी आत्मा शांति पा पाए और उनका काम नई पीढ़ियों को प्रेरित करता रहे।

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    Vakil Taufique Qureshi

    अप्रैल 15, 2025 AT 01:04

    उनकी फिल्में अब जमीनी स्तर की हो गई हैं।

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    Jaykumar Prajapati

    अप्रैल 24, 2025 AT 07:17

    देखो, जब हम बात करते हैं उस युग के दिग्गज की, तो एक सवाल उठता है-क्या आज की सिनेमा ने उनकी सच्ची भावना को समझा है? कुछ लोग कहेंगे कि अब सब कुछ व्यावसायिक हो गया है, लेकिन मैं कहूँगा कि असली सच्चाई तो वही थी जो उन्होंने स्क्रीन पर दिखायी। उनके फिल्मीय काम में अक्सर छुपे रहस्य और गुप्त संदेश होते थे, शायद वही कारण है कि लोग आज भी उन्हें याद करते हैं।

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    PANKAJ KUMAR

    मई 3, 2025 AT 13:30

    सही कहा, उनके काम में जो गहराई थी वह आज दुर्लभ है। हम सबको मिलकर उनका स्मरण करना चाहिए।

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    Anshul Jha

    मई 12, 2025 AT 19:44

    देशभक्ति की सच्ची भावना को तोड़ कर सिर्फ दिखावा बन गया है इस नई पीढ़ी में बस दिखावा दिखावा और कोई असली शौर्य नहीं

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    Anurag Sadhya

    मई 22, 2025 AT 01:57

    वाकई, मनोज कुमार की फ़िल्में हमारे दिलों में बस गई हैं 😊 उनका योगदान हमेशा हमारे साथ रहेगा।

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    Sreeramana Aithal

    मई 31, 2025 AT 08:10

    दिल से कहना चाहूँगा-हममें से कई लोग ठगी की उलझी राह में खो गए हैं, परन्तु वही सच्ची नैतिकता और वीरता हमें उनके कार्यों से मिलती है। ये व्यक्तित्व ही हमें सही दिशा दिखाता है! 🚩

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    Anshul Singhal

    जून 9, 2025 AT 14:24

    मनोज कुमार की फिल्मों को देख कर एक अजीब सी बेचैनी होती है, जैसे दिल में कोई पुराना संगीत फिर से बज उठता है। वह संगीत न सिर्फ़ देशभक्ति का था, बल्कि मानवता की गहरी समझ का प्रतीक भी था। हर कथा में उनका सटीक दृष्टिकोण और संजीदगी झलकती थी, जो आज के हल्के‑फुल्के फिल्म‑निर्माण में खो गया है। वह अपने पात्रों के माध्यम से हमें सिखाते थे कि साहस सिर्फ़ लड़ाई में नहीं, बल्कि विचारों में भी होना चाहिए। उनकी फ़िल्में हमें याद दिलाती हैं कि असली वीरता वह है जब हम अपने भीतर के डर को मात देते हैं। उनके काम में वह भावनात्मक प्रतिबिंब है जो हमें अपने मूल्यों की जाँच करने को प्रेरित करता है। जब मैं उनके एक दृश्‍य को फिर से देखता हूँ, तो मेरे मन में कई प्रश्न उठते हैं कि क्या हमने वही सच्ची भावना अपनाई है जो वह दर्शाते थे। उनका योगदान नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, क्योंकि उन्होंने भारतीय सिनेमा को एक नया आयाम दिया। यह एक ऐसी विरासत है जो संगीतमय, सामाजिक और राष्ट्रीय मूल्यों को एक साथ बुनती है। अब जब हम युवा पीढ़ी को देखते हैं, तो उनका अभाव स्पष्ट रूप से महसूस होता है। फिर भी हम आशान्वित हैं कि उनके सिद्धांतों को आगे ले जाने वाले युवा निर्देशक उभरेंगे। वह कहानियों को फिर से जीवित कर सकते हैं, यदि वे अपने दिलों में सच्ची भावना रखें। अंत में मैं यही कहूँगा-उनकी यादें हमेशा हमारे साथ रहेंगी, और उनका कार्य हमें सदैव प्रेरित करता रहेगा।

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    DEBAJIT ADHIKARY

    जून 18, 2025 AT 20:37

    मान्यवर, आपके विचारों को पढ़कर यह स्पष्ट होता है कि हम सभी को उनके योगदान को सम्मान के साथ याद रखना चाहिए। उनका कार्य हमारे सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य को समृद्ध करता है।

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    abhay sharma

    जून 28, 2025 AT 02:50

    वाह भाई क्या बात है असली शौक से लिखी है हाँ बिल्कुल दिल से लिखा है

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