लोकसभा में हंगामा: चरणजीत सिंह चन्नी बनाम रवनीत सिंह बिट्टू, बजट चर्चा में तीखी बहस

लोकसभा में हंगामा: चरणजीत सिंह चन्नी बनाम रवनीत सिंह बिट्टू, बजट चर्चा में तीखी बहस

लोकसभा में हंगामा: चरणजीत सिंह चन्नी बनाम रवनीत सिंह बिट्टू

भारतीय संसद के लोकसभा में हुई एक हालिया बजट चर्चा के दौरान, माहौल इतना गरम हो गया कि वह लगभग हाथापाई में बदल गया। कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी द्वारा दिए गए बयानों ने बजट चर्चा को तीखी बहस और हंगामे में तब्दील कर दिया। इस चर्चा के दौरान, इसी मुद्दे पर बीजेपी के रवनीत सिंह बिट्टू के साथ उनकी गरमा-गरम तकरार हुई।

चन्नी के बयान

चन्नी ने बजट चर्चा के दौरान पंजाब में नेशनल सिक्योरिटी ऐक्ट (NSA) के तहत अधिकारियों द्वारा की गई एक गिरफ्तारी का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने 20 लाख लोगों द्वारा चुने गए सांसद को नाम लिए बिना इस कानून के तहत बंदी बनाए जाने की बात कही। हालांकि, बीजेपी नेताओं ने इस बयान को अमृतपाल सिंह से जोड़कर देखा। चन्नी ने केंद्र सरकार पर 'अघोषित आपातकाल' का आरोप लगाया और देश में मौजूद कई मुद्दों, जैसे सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड और विपक्षी नेताओं के खिलाफ कार्यवाही, को लेकर सरकार की तीखी आलोचना की। चन्नी ने कहा कि केंद्र सरकार ने आम जनता और विभिन्न समूहों के साथ दुर्व्यवहार किया है।

रवनीत सिंह बिट्टू की प्रतिक्रिया

चन्नी के इन बयानों पर बीजेपी सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने जोरदार प्रतिक्रिया दी। बिट्टू ने चन्नी को 'पंजाब का सबसे भ्रष्ट व्यक्ति' करार दिया। इस पर चन्नी ने भी बिना देर किए पलटवार किया और बिट्टू के दादा, पूर्व पंजाब मुख्यमंत्री बेंट सिंह की हत्या का जिक्र किया। इस तीखी बहस ने लोकसभा की कार्यवाही को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया।

कांग्रेस का चन्नी के बयान से पल्ला झाड़ना

चन्नी के इस बयान के बाद, कांग्रेस पार्टी ने उनसे दूरी बनाने की कोशिश की और कहा कि अमृतपाल सिंह के बारे में चन्नी के विचार उनके निजी हैं और पार्टी उनके साथ सहमत नहीं है। कांग्रेस के आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा कि पार्टी ऐसी किसी भी व्याख्या का समर्थन नहीं करती।

इस हंगामेदार सत्र ने न केवल लोकसभा को हिलाकर रख दिया बल्कि भारतीय जनता तक भी इसे पहुंचाया। इस कड़ी बहस ने एक बार फिर सियासी पार्टियों के बीच की खींचातानी को उजागर कर दिया है। यह विवादित और गरम माहौल लोकसभा की कार्यवाही में एक महत्वपूर्ण मोड़ के तौर पर देखा जा सकता है।

ऐसे मामलों में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सामंजस्य की कमी और आपसी आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति हमें यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि हमारे देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में किस हद तक सुधार की आवश्यकता है। क्या ऐसी बहसों का कोई सकारात्मक पहलू भी होता है? शायद हां, अगर यह बहसे रचनात्मक दिशा में आगे बढ़ाई जाएं और नीति निर्माण को सुधारने का माध्यम बनें। चन्नी और बिट्टू के बीच की इस तीखी बहस ने हमें ऐसे ही महत्वपूर्ण सवालों से रूबरू कराया है, जिनका उत्तर ही हमारे लोकसभा के बेहतर संचालन का मार्ग दिखा सकता है।

लोकसभा में हंगामे का विस्तृत विवरण

इस पूरे वाकये की शुरुआत लोकसभा में विपक्ष द्वारा बजट पर की गई टिप्पणियों से हुई। कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद चरणजीत सिंह चन्नी ने केंद्र सरकार पर कठोर शब्दों में हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार देश में अघोषित आपातकाल लगा रही है, और उन्होंने विशेष रूप से पंजाब का उदाहरण दिया, जहां एक चुने हुए सांसद को NSA के तहत बिना किसी ठोस आधार के हिरासत में लिया गया है। इस बयान ने तत्काल सत्ता पक्ष के सदस्यों के बीच हड़कंप मचा दिया।

बीजेपी सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने चन्नी के इस बयान पर आक्रामक प्रतिक्रिया दी। उन्होंने चन्नी को 'पंजाब का सबसे भ्रष्ट व्यक्ति' कहकर उनकी आलोचना की। इसके जवाब में चन्नी ने बेंट सिंह की हत्या का मुद्दा उठाया, जिससे वातावरण और भी गरम हो गया। इस बहस में दोनों पक्षों के सांसद शामिल हो गए, और स्थिति नियंत्रण से बाहर होती नजर आई। नतीजतन, लोकसभा की कार्यवाही को कुछ समय के लिए स्थगित करना पड़ा।

कांग्रेस का चन्नी से किनारा

इस विवाद के बाद कांग्रेस पार्टी ने तुरंत ही चन्नी के बयानों से खुद को अलग कर लिया। पार्टी ने स्पष्ट किया कि अमृतपाल सिंह के संबंध में चन्नी के विचार पार्टी के विचार नहीं हैं। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि पार्टी अनुशासन का पालन करती है और ऐसे किसी भी बयान का समर्थन नहीं करती जो विभाजनकारी हो।

इस प्रकार की घटनाएं यह दर्शाती हैं कि हमारे राजनीतिक तंत्र में सामंजस्य और संवाद की कितनी कमी है। संसद में बहस और चर्चा का उद्देश्य नीतियों और मुद्दों पर गंभीर विचार-विमर्श होना चाहिए, न कि व्यक्तिगत प्रतिशोध का मंच।

देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में विश्वास बनाए रखने के लिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे वाकये न केवल रोके जाएं बल्कि उनसे सबक लेकर राजनीतिक दलों को आपसी संवाद और कामकाज की पारदर्शिता बढ़ाने पर जोर देना चाहिए।