नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत का एक प्रमुख शिक्षा केंद्र था, जो बौद्ध धर्म के अध्ययन और अनुसंधान का केंद्र था। इसकी स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। नालंदा का नाम संसार के श्रेष्ठतम विश्वविद्यालयों में शामिल था और यह दुनिया भर के छात्रों और विद्वानों को आकर्षित करता था। इसकी प्रसिद्धि इतनी थी कि चीन, कोरिया, जापान और अन्य देशों से विद्यार्थी यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे।
2017 में शुरू हुए नए परिसर का निर्माण भारत सरकार के विशेष प्रयासों से संभव हुआ है। इस नए परिसर में आधुनिक सुविधाएं शामिल हैं और यह विश्व स्तर की शिक्षा प्रदान करने के लिए तैयार है। इस परिसर में एक विशाल पुस्तकालय है जिसमें तीन लाख से अधिक किताबें होंगी। इसके अलावा, यहां छात्रों के लिए अत्याधुनिक कक्षाएं, होस्टल और अन्य सुविधाएं बनाई गई हैं।
आज के उद्घाटन समारोह में विदेश मंत्री एस. जयशंकर समेत 17 साथी देशों के राजदूत भी शामिल होंगे। यह आयोजन भारत की बौद्ध कूटनीति के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि इससे बौद्ध बहुल देशों जैसे श्रीलंका, थाईलैंड, दक्षिण कोरिया, वियतनाम और लाओस के साथ संबंधों को और मजबूती मिलने की उम्मीद है।
चीन ने इस आयोजन के प्रति अपनी सख्त प्रतिक्रिया व्यक्त की है। ऐतिहासिक तौर पर चीन और इन बौद्ध बहुल देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण रहे हैं, और भारत का यह कदम शांतिपूर्ण बौद्ध कूटनीति को बढ़ावा देने का प्रतीक देखा जा रहा है। इस दौरान अमेरिका के सीनेटरों का एक बड़ा दल दलाई लामा से भी मुलाकात करेगा, जिसे लेकर भी चीन ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
भारत सरकार न केवल नालंदा की प्राचीन प्रतिष्ठा को पुनर्जीवित करना चाहती है, बल्कि इसे 21वीं सदी के एक प्रमुख शिक्षा केंद्र के रूप में भी स्थापित करना चाहती है। नालंदा विश्वविद्यालय का नया परिसर तियों के लिए खोले गए दरवाजों के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा के विभिन्न आयामों को भी शामिल करेगा।
इस कार्यक्रम के माध्यम से भारत अपने प्राचीन गौरव को पुनः प्राप्त करने के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा को भी बढ़ावा देना चाहता है। जिस प्रकार प्राचीन नालंदा ने दुनिया भर के छात्रों को आकर्षित किया था, वैसे ही नई नालंदा विश्वविद्यालय भी अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को अपनी ओर खींचने की क्षमता रखता है।
नालंदा विश्वविद्यालय का नया परिसर न केवल शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी छलांग है, बल्कि यह भारत की शिक्षा नीति में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर भी है। इसमें आधुनिक अनुसंधान और अध्ययन के लिए सभी आवश्यक संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध होंगे। इसके साथ ही, यह विश्वविद्यालय एशिया और पूरी दुनिया में शिक्षा के नए मापदंड स्थापित करेगा।
भारत सरकार ने भविष्य में नालंदा विश्वविद्यालय को और भी अधिक विस्तारित करने की योजना बनाई है। यहां पर विभिन्न नये विभाग और अनुसंधान केंद्र खोले जाने की योजना है, जिससे यहां के छात्रों को और भी अधिक अवसर प्रदान किए जा सकें।
नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार न केवल शिक्षा में बल्कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में भी प्रभाव डालेगा। इससे स्थानीय रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और लोगों का जीवनस्तर सुधारने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही, यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों और विद्वानों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बनेगा।
नालंदा विश्वविद्यालय का नया परिसर न केवल भारत बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह शैक्षिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करेगा। इससे भारत की बौद्ध कूटनीति को भी मजबूती मिलेगी, जिससे बौद्ध बहुल देशों के साथ संबंध सुधरेंगे।