एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करने के फैसले पर अपनी निराशा प्रकट की है। लगातार नौवीं बैठक में भी आरबीआई ने दरों को अपरिवर्तित रखा है, जिसने बरुआ और अन्य कई विशेषज्ञों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। बरुआ का मानना है कि अब समय आ गया है कि आरबीआई अपने अल्ट्रा-संरक्षणवादी रुख को थोड़ा नरम करें ताकि आर्थिक वृद्धि को बल मिल सके।
बरुआ ने अपने वक्तव्य में इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान नीतिगत रुख के चलते लंबे समय तक उच्च उधारी लागत एक बड़ी चुनौती बन सकती है। जहां एक ओर मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखना महत्वपूर्ण है, वहीं दूसरी ओर आर्थिक वृद्धि भी उतनी ही जरूरी है। उन्होंने यह भी साफ किया कि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के भीतर अलग-अलग विचार हो सकते हैं और कुछ सदस्य अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण अपना सकते हैं। बरुआ का यह भी मानना है कि वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।
बरुआ ने इस बात पर भी जोर दिया कि फेडरल रिजर्व और अन्य वैश्विक केंद्रीय बैंकों के रुख को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हाल ही में फेडरल रिजर्व ने दरों में कटौती के संकेत दिए हैं, जो वैश्विक वित्तीय बाजारों पर सीधा प्रभाव डाल सकते हैं। बरुआ का मानना है कि इस संदर्भ में आरबीआई को भी अपने रुख पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि किसी प्रकार के असंतुलन से बचा जा सके।
उनके विचार में, ऊंचे ब्याज दरों के कारण निवेश में कमी और उद्योगों पर वित्तीय दबाव बढ़ सकता है, जो अंततः नौकरियों के सृजन और आर्थिक विकास को प्रभावित करेगा। उन्होंने इस पर भी प्रकाश डाला कि वर्तमान नीति भारतीय अर्थव्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में नुकसान पहुंचा सकती है।
बरुआ ने सुझाव दिया कि आरबीआई को अर्थव्यवस्था की विषमताओं और वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए अपनी नीतिगत प्राथमिकताओं को पुनः परिभाषित करना चाहिए। एक संतुलित दृष्टिकोण जिससे मुद्रास्फीति पर भी नियंत्रण रखा जा सके और आर्थिक विकास को भी गति दी जा सके, समय की मांग है।
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि आरबीआई को न केवल घरेलू बल्कि वैश्विक आर्थिक संकेतकों पर भी ध्यान देना चाहिए ताकि नीति में समुचित संतुलन बना रहे। वर्तमान संदर्भ में, जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था भी धीमी गति से चल रही है, ऐसा दृष्टिकोण भारत के लिए अधिक प्रभावी साबित हो सकता है।
इसके साथ ही, बरुआ ने यह भी कहा कि कई प्रमुख इकॉनमिक संकेतक यह बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था को समर्थन की आवश्यकता है। इसलिए, नीतिगत निर्णयों में अधिक लचीला दृष्टिकोण अपनाना समय की मांग है।
अभीक बरुआ की चिंताओं को देखते हुए यह स्पष्ट है कि आरबीआई के नीतिगत निर्णयों का व्यापक प्रभाव हो सकता है। दरों में कोई परिवर्तन न करने का वर्तमान फैसला आने वाले समय में अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाने की जरूरत संभवतः अब तक की सबसे बड़ी चुनौती है। आने वाले समय में आरबीआई को इस दिशा में और अधिक गहराई से विचार करना होगा ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बन सके और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी अपनी जगह बना सके।