जब स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (एसबीआई) ने 17 सितंबर 2025 को अपने 13.18 % का शेयर समितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉर्पोरेशन (एएसएमबीसी) को ₹8,888.97 crore में बेच दिया, तो यह भारत के बैंकिंग सेक्टर में सबसे बड़ा क्रॉस‑बॉर्डर निवेश बन गया। इस कदम में बंदन बैंक लिमिटेड ने भी अपने 0.70 % के हिस्से का 85 % भाग 15.39 crore शेयर के हमले में एएसएमबीसी को सौंपा।
- एसबीआई की हिस्सेदारी: 23.98 % से घटकर 10.8 %
- बंदन बैंक की हिस्सेदारी: 0.70 % से घटकर 0.21 %
- एएसएमबीसी की संभावित हिस्सेदारी: कुल 24.99 % (एसबीआई से 13.19 % + अन्य बैंकों से 6.81 %)
- वित्तीय मूल्य: प्रति शेयर ₹21.50, कुल ₹8,889 crore से अधिक
- अनुमोदन: RBI (22 अगस्त 2025), CCI (2 सितंबर 2025)
डिवेस्टमेंट की पृष्ठभूमि
2020 में RBI ने येस बैंक को बचाने के लिये एक पुनर्निर्माण स्कीम लागू की थी, जिसमें सार्वजनिक‑निजी भागीदारी की नई अवधारणा पेश हुई। उस समय स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया सबसे बड़ा शेयरधारक बन गया, जबकि अन्य निजी बैंकों ने भी छोटी‑छोटी हिस्सेदारी ली। अब छह साल बाद, वही योजना नई मोड़ ले रही है: एएसएमबीसी जैसे विदेशी बैंक को रणनीतिक साझेदार के रूप में लाना।
लेन‑देन के विवरण
लेन‑देन में कुल 4.13 बिलियन शेयरों का हस्तांतरण शामिल था, जो प्रत्येक ₹21.50 पर मूल्यांकित थे। बंदन बैंक ने 153,934,975 शेयर एएसएमबीसी को बेचे, जबकि फेडरल बैंक ने भी 166,273,472 शेयरों की हिस्सेदारी एएसएमबीसी को बेची। सभी शेयरों की डिलीवरी उसी दिन, यानी 17 सितंबर को पूरी हुई।
भुगतान की व्यवस्था SEBI के नियमों के तहत की गई, और दोनों विक्रेता बैंकों ने स्टॉक एक्सचेंजों को आधिकारिक रूप से सूचित किया। इस प्रक्रिया में रीज़़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) ने 15 सितंबर 2025 को एक स्पष्टीकरण जारी किया, जिसमें कहा गया कि एएसएमबीसी को 24.99 % तक का शेयर मिल सकता है, लेकिन वह प्रमोटर नहीं माना जाएगा।
मुख्य व्यक्तियों की प्रतिक्रियाएँ
इस सौदे पर टिप्पणी करते हुए चल्ला श्रीनिवासूले सेट्टी, एसबीआई के चेयरमैन ने कहा, "2020 की पुनर्निर्माण योजना भारत की पहली सार्वजनिक‑निजी साझेदारी थी, और अब एएसएमबीसी जैसी वैश्विक शक्ति जुड़ रही है। हम इस रणनीतिक कदम से येस बैंक के भविष्य को और सुदृढ़ देख रहे हैं।"
बंदन बैंक के सीईओ ने भी आशा व्यक्त की कि एएसएमबीसी की भागीदारी से बैंक के डिजिटल आधुनिकीकरण में गति आएगी। वहीं, एएसएमबीसी के भारत प्रवक्ता ने बताया कि यह निवेश जापान की दूसरी सबसे बड़ी वित्तीय समूह की भारत में दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
बाजार पर असर
डिवेस्टमेंट की घोषणा के बाद, बंदन बैंक के शेयर 1.01 % बढ़े और ₹164.32 पर बंद हुए। येस बैंक के शेयरों ने 10 अक्टूबर 2025 को 8 % से अधिक की उछाल के साथ 52‑सप्ताह का उच्चतम स्तर छू लिया। निवेशकों का स्केलेशन इस बात से जुड़ा था कि एएसएमबीसी का प्रवेश येस बैंक को नई पूंजी और अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क तक पहुंच देगा, जिससे बंगला‑हाउस, रिटेल ऋण और डिजिटल भुगतान में बूम की उम्मीद है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारतीय बैंकों के विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करेगा, और RBI की भविष्य की नीतियों पर भी असर डालेगा। कुछ विश्लेषकों ने कहा कि एएसएमबीसी के 24.99 % हिस्से से वह बैंकों की गवर्नेंस में सीधे भूमिका नहीं लेगा, इसलिए शेयरधारकों की सुरक्षा बनी रहेगी।

भविष्य की संभावनाएँ
एएसएमबीसी ने इस सौदे के साथ भारत में अपनी उपस्थिति को मजबूत करने का इरादा स्पष्ट किया है। अगले साल तक, यह उम्मीद की जा रही है कि एएसएमबीसी येस बैंक के साथ मिलकर पाँच प्रमुख डिजिटल प्रोडक्ट लॉन्च करेगा, जिसमें एआई‑आधारित क्रेडिट स्कोरिंग और अंतरराष्ट्रीय भुगतान प्लेटफॉर्म शामिल होंगे। इस दिशा में RBI की नियामक दिशा‑निर्देशों का पालन आवश्यक होगा, विशेषकर विदेशी स्वामित्व की सीमा के संबंध में।
साथ ही, इस डिवेस्टमेंट ने अन्य निजी बैंकों को भी अपने विदेशी निवेश की योजना पुनः मूल्यांकन करने पर मजबूर किया है। यदि एएसएमबीसी का कदम सफल हो जाता है, तो हम आगे कई बड़े‑बड़े विदेशी बैंक‑इंसर्शन को भारतीय बैंकों में देख सकते हैं।
ऐतिहासिक संदर्भ
येस बैंक की वित्तीय संकट 2020 में RBI के हस्तक्षेप से शुरू हुई, जब दो पावर‑बैटरियों वाले प्रमुख शेयरधारकों ने अपनी हिस्सेदारी घटा दी थी। उस समय, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने सबसे बड़ी हिस्सेदारी (23.98 %) ली और बैंक को पुनर्स्थापित करने में मदद की। इस पुनर्निर्माण स्कीम ने भारत के सार्वजनिक‑निजी साझेदारी मॉडल को नई दिशा दी, और इस बार वही मॉडल एएसएमबीसी की भागीदारी में दोहराया जा रहा है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
SMBC की येस बैंक में हिस्सेदारी का प्रतिशत कितना है?
RBI के स्पष्टीकरण के अनुसार, एएसएमबीसी 24.99 % तक की हिस्सेदारी हासिल कर सकता है, जिसमें 13.19 % एसबीआई से और 6.81 % अन्य बैंकों से आएगा। यह हिस्सेदारी उसे प्रमोटर दर्जा नहीं देती।
डिवेस्टमेंट से बंदन बैंक को क्या लाभ मिला?
बंदन बैंक ने लगभग ₹3,300 crore का निकास प्राप्त किया, और अपने शेयरधारकों को अतिरिक्त तरलता दी। साथ ही, छोटे हिस्से को बेच कर वह अपनी मूल रणनीति पर फिर से ध्यान केंद्रित कर सकेगा।
क्या इस सौदे से RBI की नीति में बदलाव आएगा?
वर्तमान में RBI ने इस डिवेस्टमेंट को मान्यता दी है, पर भविष्य में विदेशी संस्थाओं की हिस्सेदारी सीमा और गवर्नेंस मानदंडों पर अधिक कठोर नियम लागू हो सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम एक परीक्षण केस बन सकता है।
येस बैंक के शेयरों पर इस खबर का क्या असर रहा?
डिवेस्टमेंट के बाद येस बैंक के शेयर अप्रैल‑ऑक्टोबर 2025 के बीच 8 % से अधिक उछाले, जिससे 52‑सप्ताह का हाई बना। निवेशकों ने एएसएमबीसी की रणनीतिक भागीदारी को सकारात्मक संकेत माना।
क्या अन्य भारतीय बैंकों में भी विदेशी शेयरधारक आएंगे?
विश्लेषकों का अनुमान है कि एएसएमबीसी की सफलता के बाद, कई निजी और सार्वजनिक बैंकों में समान निवेश की संभावना बढ़ेगी, खासकर उन बैंकों में जो डिजिटल परिवर्तन की जरूरत महसूस कर रहे हैं।
harshit malhotra
अक्तूबर 11, 2025 AT 03:50हमारी आत्मा में जोश नहीं है तो कैसे राष्ट्रीय गर्व की बात कर सकते हैं? एसबीआई‑बंदन बैंक की इस बड़े पैमाने पर शेयर बेचना एकदम बवाल है! येस बैंक को विदेशी मित्सुई की हिस्सेदारी देना मतलब हमारी आर्थिक स्वायत्तता को घातक धक्का। इस कदम को देखकर मेरे भीतर जलती हुई गुस्से की लहर बढ़ती ही जा रही है। क्या हमने अपने वित्तीय भविष्य को विदेशियों के हाथों में सौंप दिया? एक बार फिर विदेशी का हाथ भारतीय बैंकिंग में, यह दिखाता है कि हमें अपनी नीति को कितनी सख्ती से लागू करना चाहिए। इस डिवेस्टमेंट से न सिर्फ शेयरधारक, बल्कि सामान्य जनता को भी मुश्किलें झेलनी पड़ेंगी। हमें यह समझना होगा कि विदेशी निवेश से बहुत सारी शर्तें आती हैं, जो हमारी नियामक शक्ति को कमजोर कर सकती हैं। सरकार को इस प्रकार के बड़े विदेशी साझेदारियों में लोगों की आवाज़ को दबाना नहीं चाहिए। एएसएमबीसी जैसी संस्थानों को लेकर हमें सतर्क रहना होगा, क्योंकि उनका अंतिम लक्ष्य लाभ-अधिकार है, न कि भारतीय जनता का कल्याण। इस संक्रमण में हमें अपने आर्थिक लक्ष्यों को छेड़ना नहीं चाहिए, इसे थोपने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। येस बैंक का भविष्य अब विदेशी प्रबंधन के हाथों में है, जो कि निराशाजनक है। यह क़दम भारतीय बैंकों की स्वायत्तता को तहस-नहस कर सकता है। हमें यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या हम अपने वित्तीय प्रणाली को पूरी तरह से अज्ञात शक्ति के हवाले कर रहे हैं? इस बेदख़ली से राष्ट्रीय हितों को नजरअंदाज़ किया जा रहा है। अंत में, मैं यह कहूँगा कि इस तरह की विदेशी हिस्सेदारी को रोकना चाहिए, नहीं तो हम अपने ही आर्थिक ढांचे को नष्ट कर देंगे।